मातारानी है नमन्,सदा झुका यह माथ।
जननी तेरा नित रहे,मेरे सिर पर हाथ।।
नौ रूपों में आप तो,रहतीं हरदम भव्य।
रोशन तेरी दिव्यता,महिमा हर पल श्रव्य।।
साँचा है दरबार माँ,है कितना अभिराम।
जिसने भी श्रद्धा रखी,बनते उसके काम।।
माँ तुम हो नेहमय,देतीं हो आलोक।
सिंहवाहिनी की दया,करे परे हर शोक।।
नवरातें मंगल करें,शुभ करती हैं नित्य।
दिवस उजाला कर रहे,बनकर के आदित्य।।
विन्ध्यवासिनी माँ तुम्हें,बारंबार प्रणाम।
तुम से ही बनते सदा,मेरे बिगड़े काम।।
भक्त आपका कर रहे,श्रद्धामय हो जाप।
प्रबल शक्ति,आवेग है,प्रखर आपका ताप।।
संयम को मैं साधकर,शरण आपकी आज।
माता हे! सुविचारिणी,सब पर तेरा राज।।
माता हरना हर व्यथा,देना जीवनदान।
चलूँ धर्मपथ,नीतिपथ,कर पूरण अरमान।।
सदा आप में है भरा, ज्ञान, भक्ति, तप,योग।
हरतीं हो हे मातु ! नित,काम,क्रोध अरु रोग।।