भोपाल – प्रदेश के टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में क्षमता से अधिक बाघ हो गए हैं। इससे वन विभाग के सामने इनके संरक्षण की चुनौती बढ गई है। बाघ संघर्ष एवं रिहायशी इलाकों में बाघों को निकलने से रोकने के लिए व्यवस्थित नए कारिडोर बनाने की जरूरत इसी लिए महसूस की जा रही है। बाघ संरक्षण की दिशा में पार्कों में बाघों के घनत्च के मुताबिक कम जगह, व्यवस्थित कारिडोर न होना और शिकार की घटनाएं सबसे बड़ी चुनौती हैं।
प्रदेश में बाघों का कुनबा बढ़ रहा है। इसलिए वे अपनी टेरेटरी बनाने के लिए जंगल से बाहर निकलते हैं और शिकार हो जाता है। ज्यादातर मामले करंट और जहरखुरानी के हैं। पिछले साल ही शिकार के आठ मामले सामने आए हैं। एक कारण घटते जंगल भी हैं। इस कारण बाघ एक से दूसरे संरक्षित क्षेत्रों में नहीं जा पाते हैं। जब वे जंगल से बाहर आते हैं तो मानव-बाघ संघर्ष की स्थिति निर्मित होती है। नए संरक्षित क्षेत्र भी गठित करने होंगे। कमल नाथ सरकार ने 11 नए अभयारण्य गठन के प्रस्ताव मंगाए थे, जिन पर अब तक निर्णय नहीं हो पाया है।
कान्हा, पन्ना, पेंच, बांधवगढ़, सतपुड़ा और संजय दुबरी टाइगर रिजर्व सहित अन्य बाघ संरक्षित क्षेत्रों से वनग्राम हटाए गए। पानी के स्रोत तैयार किए गए। जिन स्थानों पर बाघों का पेट भरने के लिए शाकाहारी वन्यप्राणी नहीं थे, वहां दूसरे स्थानों से लाकर शिफ्ट किए गए। बाघ पालतु पशुओं का शिकार कर ले, तो पशु मालिक को मुआवजा देने का प्रविधान किया गया। इससे बाघों के अनुकूल माहौल तैयार करने में मदद मिली।
राज्य सरकार ने 2018-19 में बाघों के संरक्षण, सुरक्षा और निगरानी में 283 करोड़ रुपये, 2019-20 में 220 करोड़ और 2020-21 में 264 करोड़, 2021-22 में 128 करोड़ और 2022-23 में 122 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। बाघों की संख्या बढ़ी तो प्रदेश में पर्यटन भी बढ़ा। वर्तमान में देशभर से लोग कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, पन्ना टाइगर रिजर्व घूमने आते हैं।
जहां वर्ष 2000 तक इन पार्कों में वर्षभर में 50 से 70 हजार पर्यटक आते थे, वहां आज 25 लाख से अधिक आ रहे हैं। इससे पार्कों की स्थिति तो सुधरी ही है, पार्कों के आसपास बसे लोगों को रोजगार भी मिला है। वर्तमान में इन पार्कों से तीन सौ करोड़ से अधिक का रोजगार मिलता है।