भोपाल – प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में शुक्रवार को पूर्व मंत्री एवं विधायक श्री पी.सी. शर्मा ने प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि भाजपा सरकारें केंद्र में हों या राज्य में स्वभाव से किसान विरोधी हैं। मप्र की भाजपा सरकार फसलों के दाम मांगने पर किसानों के सीने में गोलियां उतार देती है और केंद्र की भाजपा सरकार किसान फसलों के दाम मांगे तो उनके सिर लहू लुहान किये जाती है, राहों में कील और कांटे बिछाती है, उन्हें खालिस्तानी और पाकिस्तानी बताती है। वहीं कमलनाथ सरकार 27 लाख किसानों का कर्ज माफ करती है, 20 लाख 10 हजार कृषि पंपों के लिए 6137.94 करोड रूपये की सब्सिडी का प्रावधान करती है और हिन्दुस्थान की सबसे सस्ती बिजली 44 पैसे प्रति यूनिट किसान भाईयों को उपलब्ध कराती है और एक हेक्टेयर तक की भूमि वाले अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के कृषको को 5 हार्स पॉवर तक की कृषि पंप की बिजली मुफ्त दी जाती है ।
आमदनी नहीं हुई दोगुना-दर्द दिया सौ गुना:-
शिवराज-मोदी सरकार ने देश के किसानों से वायदा किया था कि पांच साल में किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी जायेगी और आमदनी दो गुना करने के लिए यह बताया गया था कि हमने किसानों के लिए अपने बजटों में अच्छा प्रावधान किया है और व्यापक योजनाएं बनायी हैं।
आईये, हम सिलसिलेवार जानते हैं, उन योजनाओं और किसानों के लिए रखे गये बजट का इन सरकारों ने क्या हश्र किया।
केंद्र सरकार का छलावा:-
केंद्र की मोदी और प्रदेश की मामा सरकार ने एक तरफ तो लगातार यह ढ़िढोरा पीटा कि हम किसानों की बेहतरी के लिए बड़ा कृषि बजट बना रहे हैं, मगर असल में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग का बजट कुल देश के बजट की तुलना में लगातार कम किया गया। कुल केंद्रीय बजट के प्रतिशत में 2020-21 में कृषि का बजट 4.41 प्रतिशत था, जो कि 2021-22 में कम करके 3.53 प्रतिशत किया गया, 2022-23 मंे फिर कम करके 3.14 प्रतिशत और हाल ही में 2023-24 का बजट जो जारी किया गया, उसमें कृषि का बजट कुल देश के बजट का मात्र 2.57 प्रतिशत कर दिया गया।
केंद्र सरकार द्वारा 2019-20, 2020-21, 2021-22, और 2022-23 में क्रमशः 34517.70 करोड़ 23824.54 करोड़, 429.22 करोड़ और 19762.05 करोड़ रू. अर्थात 78533.51 करोड़ खर्च ही नहीं किये और कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के बजट के सरेण्डर कर दिये।
इससे भी चौकाने वाला तथ्य यह है कि केंद्र सरकार ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के 2022-23 का बजट स्टीमेट जो कि 1 लाख 24 हजार करोड़ रू. था। जिसमें से 10 फरवरी 2023 तक 66030.53 करोड़ रू. ही विभाग द्वारा खर्च किया गया था। अर्थात फरवरी माह तक बजट स्टीमेट का मात्र 53 प्रतिशत राशि ही खर्च की गई।
राज्य सरकार का छलावा:-
यही हाल शिवराज सरकार का भी है। केंद्रीय प्रायोजित योजना में किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मंे 1211.51 करोड़ रू. का प्रावधान रखा था, जिसमें से राज्य का हिस्सा 478.21 करोड़ रू. और केंद्र का हिस्सा 733.29 करोड़ रू. था, जिसमें से केंद्र सरकार ने 28 फरवरी 2023 तक मात्र 163 करोड़ रू. की राशि ही राज्य को भेजी अर्थात सिर्फ 22 प्रतिशत और शिवराज सरकार ने भी अपनी ओर से इसकी अनुपातिक राशि से अधिक राशि खर्च की। अर्थात सिर्फ किसान के कल्याण के लिए वर्ष भर में केवल 22 प्रतिशत राशि ही खर्च की गई।
किसान कल्याण एवं कृषि विभाग की केंद्र प्रायोजित बीस योजनाएं ऐसी थीं जिसमें एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया। जैसे परंपरागत कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सबमिशन ऑन फार्म वॉटर मेनेजमेंट, कृषि वानिकी सबमिशन, स्वाईल हेल्थ कार्ड योजना इत्यादि। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में मात्र 18 प्रतिशत राशि ही भेजी गई। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना मंे 43 प्रतिशत अर्थात कृषि क्षेत्र को बहुत बुरा आघात पहुंचाया जा रहा है।
इसी प्रकार 2021-22 में पूरे वर्ष किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग मंे केंद्र प्रायोजित योजनाओं में मात्र 52.20 प्रतिशत राशि ही खर्च की गई। जबकि कमलनाथ सरकार की दक्षता थी कि किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग की केंद्र प्रायोजित योजना की सौ प्रतिशत राशि केंद्र और राज्य के हिस्से से खर्च की गई। जबकि 2018-19 मंे भी यह आंकड़ा मात्र 67.98 प्रतिशत था।
किसानों का अपमान बनी-किसान सम्मान निधि:-
मोदी-मामा सरकारों ने बीते 7-8 वर्षों में खेती की लागत 25 हजार रू. हेक्टेयर बढ़ा दी। डीजल के दाम बढ़ाकर, खाद-कीटनाटक और कृषि उपकरणों जैसे कल्टीवेशन हार्वेसटिंग के लिए उपयोग की जाने वाली मशीन, जर्मीनेशन प्लांट फीटेट मशीन इत्यादि पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाकर, फसलों की शार्टिंग एवं ग्रेडिंग करने वाली मशीनों पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाकर। अर्थात एक मार्जिनल फार्मर को खेती की लागत 50 हजार रू. अतिरिक्त आने लगी और किसानों को 6000 रू. साल देने का स्वांग रचा गया। मगर इसकी सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने 2022-23 में जो ग्यारहवीं किस्त अप्रेल-जुलाई 2022 में 10 करोड़ 45 लाख 59 हजार 905 किसानांे को दी थी, बारहवीं किस्त अगस्त-नवम्बर 2022 में घटाकर 8 करोड़ 42 लाख 14 हजार 408 कर दी। अर्थात इस योजना से 02 करोड़ 03 लाख 45 हजार 497 किसानांे को बाहर कर दिया गया।
यही छल मप्र की भाजपा सरकार ने भी किसानों के साथ किया। उन्होंने मप्र में इसी अवधि के दौरान 350895 किसानों को इस किसान सम्मान निधि से वंचित कर दिया। समूचे मप्र से शिकायत आ रही है कि किसान सम्मान निधि वापस मांगने के लिए किसानों को नोटिस दिये जा रहे हैं।
एग्रीकल्चर इफ्रास्ट्रक्चर फंड का सच:
मोदी-मामा सरकार ने ढ़िढोरा पीटा कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए 01 लाख करोड़ रू. का एग्रीकल्चर इफ्रास्ट्रक्चर फंड रखा गया है, यह एक सस्ती दरों पर लोन प्रदाय करने की योजना थी। इसका सच यह है कि आज तीन साल से अधिक हो जाने के बाद भी इसमें मात्र 12 हजार करोड़ रू. का ऋण दिया गया है। मप्र के लिए भी इसमें 7440 करोड़ रू. का प्रावधान किया गया था, मगर इस मद में अब तक मप्र को मात्र 3208.3 करोड़ रू. जारी किये गये, जिसमें से भी यह ऋण किसानों को मात्र 817 करोड़ रू. का दिया गया, बाकी व्यवसासियों और एफपीओ को बांट दिया गया।पीएम आशा योजना:-
मोदी-मामा सरकार ने देश और प्रदेश को आश्वस्त किया था कि हम अन्नदाता की आय संरक्षित करने के लिए यह योजना ला रहे हैं। यदि बाजार में उनकी फसलों के दाम कम होंगे तो हम किसानों को उसकी प्रतिपूर्ति करेगी। दलहन, तिलहन, खोपरा इत्यादि फसलों को इसमें चिन्हित किया गया था।
इस योजना में 2021-22 में 500 करोड़ रू. का प्रावधान किया गया था, जिसे घटाकर 400 करोड़ रू. किया गया और अंततः घटाकर एक करोड़ रू. किया गया, मगर इस योजना के तहत एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया, इस वर्ष के बजट 2023-24 में मात्र एक लाख रू. का प्रावधान रखा गया।
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किसान विरोधी मामा और मोदी सरकार:-
1. मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में शपथ-पत्र दिया कि यदि किसानों को लागत के ऊपर 50 प्रतिशत समर्थन मूल्य दिया गया तो बाजार डिस्टार्ट हो जायेगा।
2. सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने कांग्रेस सरकार द्वारा किसानों की जमीन के उचित मुआवजा कानून को एक के बाद एक तीन अध्यादेश लाकर समाप्त करने की कोशिश की। कांग्रेस किसानों के साथ सड़कों पर आयी और मोदी सरकार इस कोशिश में नाकाम रही।
3. इसी प्रकार फरवरी 2016 में मप्र के सीहोर में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का शुभारंभ करते हुये मामा और मोदी सरकारों ने इसे विश्व की सबसे अच्छी योजना बताया था। इसकी सच्चाई यह है कि गुजरात सहित 6 प्रांतों ने इस योजना को बंद कर दिया और इस योजना से निजी कंपनियों ने अब तक 40 हजार करोड़ रू. का मुनाफा कमाया।
4. मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही किसानों को समर्थन मूल्य के ऊपर दिया जाने वाले गेहूं और चावल का बोनस राज्य सरकारों से बंद करा दिया गया। कमलनाथ सरकार ने 160 रू. के बोनस की घोषणा की तो 6 लाख मेट्रिक टन से अधिक राज्य का गेहूं मोदी सरकार ने स्वीकारने से इंकार कर दिया।
5. किसानों के खिलाफ कृषि के क्रूर तीन काले कानून लाये गये।
मोदी और मामा सरकार ने 27 रू. प्रतिदिन की आमदनी और 74 हजार रू. से अधिक का औसत कर्ज किसानों को दिया:-
मामा और मोदी सरकार के उपरोक्त सभी किसान विरोधी कदमों का परिणाम यह हुआ कि मोदी सरकार के एनएसएसओ की 77 रिपोर्ट जो कि सितम्बर 2021 में जारी की गई थी मंे बताया कि फसल उत्पादन में संलग्न प्रति कृषि परिवार का फसल उत्पादन पर औसतन मासिक व्यय 2959 रू. है और औसत मासिक प्राप्ति 6960 रू. है, अर्थात औसत एक किसान की आमदनी 26.59 रू. प्रतिदिन मात्र है और औसत देश के प्रत्येक किसान परिवार पर 74 हजार 121 रू. का कर्ज है।
मप्र के लिए एनएसएसओ के सर्वे ने बताया कि एक किसान परिवार मजदूरी से प्रतिमाह 2488 रू. कमाता है, लैंड को लीज आउट करने पर 54 रू., फसलों की कमाई 4309 रू., पशु धन से शुद्ध आय 1295 रू., गैर कृषि काम से 193 रू. इस प्रकार कुल 8339 रू. प्रतिमाह उसे प्राप्त होते हैं, जो कि राष्ट्रीय औसत 10218 से काफी कम है। मप्र में कुल 48.4 प्रतिशत किसानों पर औसत कर्ज 74 हजार 420 रू. है।
किसानों ने सहा आत्महत्या का दंश:-
मप्र में भाजपा सरकार आने के वर्ष 2004 से 2021 तक 31295 किसान और खेतीहर मजदूर आत्महत्या के लिए बाध्य हुये हैं।
आज समूचे मप्र के किसान ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से त्राहिमाम कर रहे हैं, 43 जिलों से अधिक के 3800 से अधिक गांवों में डेढ़ लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र की गेहूं, चना, सरसों इत्यादि की फसल चौपट हो गई है। एक तरफ किसान गम के अंधकार में डूबा है, तो दूसरी ओर भाजपा सरकार अपने तीन साल पूरे होने के जश्न में डूबी हुई है। मप्र के यशस्वी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने ओलावृष्टि से तबाह हुई फसलों का खेतों पर पहुंचकर निरीक्षण करने के निर्देश सभी जिला/ शहर कांग्रेस कमेटियों को दिये हैं।